Mahalaxmi Stotra in Marathi -
श्री महालक्ष्मी स्तोत्र
श्री महालक्ष्मी स्तोत्र मराठी Mahalaxmi Stotra in Marathi
।।श्री महालक्ष्मी स्तोत्र।।
सुंदरे गुणमंदिरे करुणाकरे कमलोद्भवे। सिद्धचारण पूजिती जनवंदिते महावैश्णवे।।1।।
त्राहि हो मज पाही हो मज पाही हो महालक्ष्मी। हेमभावन रत्नकोन्दण हे सिंहासन आसनी।।2।।
एक एक विचित्र माणिक जोडिले मुकुटावरी। त्यासि देखुनी लोपला शशि चालला गगनोदरी।।3।।
कुण्डले श्रवणी रवि शशि मंडळासम वर्तुळे। डोलता सुरनायकावरि हालताती चंचले।।4।।
कंचुकी कुचमंडळावर हार चंपक रुळती। पारिजातक शेवती बटमोगरा आणि मालती।।5।।
पिवळा पट तो कटी तटी वेष्टिल्या बरवे परी। सौदामिनीहुनी तेज अधिक ते शोभते उदरावरी।।6।।
कमुकावर मन्मथे शरसज्जिल्या तैशा निर्या। गर्जती पद पंकजी किती नुपुरे आणि घागर्या।।7।।
इंद्र चंद्र महेंद्र नारद पाद पंकज अर्पिती। कुंकुमागुरु कस्तूरी किती आदरे तुज चर्चिती।।8।।
निर्जळे तुज पूजिता बहु शोभिसी कमलासनी। किती हो तुज वर्णु मी मज पाव हो कुलस्वामिनी।।9।।
कोटि तेहतीस देवतांसवे घेऊनी विन्झणे करी। चामरे चिरपल्लवे तुज ढाळिती परमेश्वरी।।10।।
नामामृत दे निरंतर याचकाप्रती गिरीसुते। जोडुनी कर विनवितो मज पाव हो वरदेवते।।11।।
संकटी तुज वाचुनी मज कोण रक्षिल अम्बिके। कृष्णकेशव प्रार्थतो मज पाव हो जगदम्बिके।।12।।
|| जय जगदम्ब | उदयोस्तु | अंबे उदयोस्तु ||
श्री महालक्ष्मी स्तोत्र संस्कृत / महालक्ष्मी अष्टकम
॥ महालक्ष्म्यष्टकम ॥
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥२॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥४॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥५॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर् महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥७॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर् महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥८॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥९॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः॥१०॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥११॥
॥ इति श्री महालक्ष्मीस्तव ॥