पृथ्वी की सतह से पानी वाष्प बनकर ऊपर उठता है और वापस ठंडा होकर पानी की बूंदों के रूप में निचे गिरता है जिसे हम बारिश कहते है.
Barish kaise hoti hai – बारीश कैसे होती है
- सूरज की किरणो से समुद्र के पानी से वाष्प बनती है
- वाष्प उपर जा के बादल का रूप लेती है
- बादल को थंडी हवा लगती है
- बादल का पाणी या ओलो मे रूपान्तरण होता है
- बर्फ या पानी जमीन पे गिरता है
बारिश क्यों होती है ( Barish Kyu Hoti Hai)
गर्म हवा में ठंडी हवा से ज्यादा पानी इकट्ठा करती है और जब यह हवा अपने अंदर इकट्ठे पानी को ऊंचाई पर ले जाती है तो ठंडे जलवायु मैं मिल जाती है और अपने अंदर का जमा हुआ पानी के भारी हो जाने पर उसे नीचे गिराने लगती है। जिसे बारिश या वर्षा कहते हैं।
वर्षा (Rainfall) एक प्रकार का संघनन है। पृथ्वी के सतह से जल वाष्पित होकर ऊपर उठता हैऔर ठण्डा होकर पानी की बूंदों के रूप में पुनः धरती पर गिरता है। इसे वर्षा कहते हैं।
वर्षा के प्रकार:
- संवहनीय वर्षा
- पर्वत कृत वर्षा
- चक्रवाती वर्षा
गरमी के कारण उत्पन्न जलवाष्प ऊपर आकाश में जाकर फैलता है एवं ठंडा होता है। अत: जैसे जैसे वायु ऊपर उठती है, उसमें जलवाष्प धारण करने की क्षमता कम होती जाती है। यहाँ तक कि अधिक ऊपर उठने से वायु का ताप उस अंक तक पहुंच जाता है, जहाँ वायु जलवाष्प धारण कर सकती है। इससे भी कम ताप हो जाने पर, जलवाष्प जलकणों में परिवर्तित हो जाता है। इसी से बादलों का निर्माण होता है। फिर बादल जल के कारण धरातल पर बरस पड़ते हैं। जलकण बनने के उपरांत भी यदि वायु का ताप कम होते होते हिमांक से भी कम हो जाता है, तो जलकण हिमकणों का रूप धारण कर लेते हैं जिससे हिमवर्षा होती है। वर्षा के लिए दो बातें आवश्यक हैं :
- (१) हवा में पर्याप्त मात्रा में जलवाष्प का होना, तथा
- (२) वाष्प से भरी हवाओं का शीतल पदार्थों के संपर्क में आने से ठंडा होना और ओसांक तक पहुँचना।
संवहनीय वर्षा (Convectional rain)
संवहनीय वर्ष में प्राय: प्रति दिन होती है । दिन में अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण धरातल गर्म हो जाता है , जिस कारण वायु गर्म होकर फैलती है शुष्क एडियावेटिक दर से प्रति 1000 मीटर पर या वायु का 283.15°k(10°C) तापमान कम होने लगता है जिस कारन वायु ठंडी हो जाती है।
पर्वतकृत वर्षा (Orographical rain)
पर्वतकृत वर्षा
वाष्प से भरी हवाओं के मार्ग में पर्वतों का अवरोध आने पर इन हवाओं को ऊपर उठना पड़ता है जिससे पर्वतों के ऊपर जमे हिम के प्रभाव से तथा हवा के फैलकर ठंडा होने के कारण हवा का वाष्प बूँदों के रूप में आकर धरातल पर बरस पड़ता है। ये हवाएँ पर्वत के दूसरी ओर मैदान में उतरते ही गरम हो जाती हैं और आसपास के वातावरण को भी गरम कर देती है। विश्व के अधिकतर भागों में इसी प्रकार की वर्षा होती है। मानसूनी प्रदेशों (भारत) में भी इसी प्रकार की वर्षा होती है। इस वर्षा को पर्वतकृत वर्षा कहते हैं।
चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic rain)
इस प्रकार की वर्षा गर्म और शीतल वायुराशियों के आपस में मिलने से होती है, क्योंकि हल्की गरम वायु ऊपर उठती है तथा भारी शीतल वायु नीचे बैठती है। अत: ऊपर उठनेवाली वायु ठंडी होकर वर्षा करने लगती है। इस प्रकार वर्षा प्राय: शीतोष्ण कटिबंध में हुआ करती है।
बारिश होने के अलग-अलग कारण
बारिश कभी भी एक साथ हर जगह नहीं होती और एक समान नहीं होती. धरती पर बहुत सी प्रक्रियाएं हैं जिसके कारण कई स्थानों पर बारिश होती है. इन प्रक्रियाओं में से सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानसून की प्रक्रिया को माना जाता है.
जिस वजह से एक ही इलाके में कुछ महीनों तक लगातार या फिर रुक-रुक कर बारिश होती है. कई बार बिना मौसम के भी बारिश हो जाती है जिसे स्थानीय वर्षा कहते हैं. कई बार समुद्री इलाकों में उठे चक्रवात के कारण भी आसपास के इलाकों में बारिश होती है.
बारिश कैसे मापी जाती है ?
किस स्थान पर कितनी वर्षा हुई है, इसे मापने के लिए एक यंत्र काम में लाया जाता है, जिसे वर्षामापी (Rain gauge) कहते हैं। इसे एक निश्चित समय में तथा निश्चित स्थान पर वर्षा में रखकर पानी के बरसने की मात्रा को माप लिया जाता है।