अरदास – Ardaas in Hindi

Ardaas in Hindi

अरदास एक फ़ारसी शब्द है, जिसका अर्थ है एक अनुरोध, एक प्रार्थना, एक याचिका। यह सिख धर्म के लोगो की प्रार्थना है, जो किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने से पहले या उसके बाद की जाती है।

अरदास,ईश्वर से एक विनम्र प्रार्थना है, जिसके माध्यम से एक सिख धार्मिक स्वतंत्रता और सिख धर्म को बनाए रखने के लिए गुरुओं और सिखों द्वारा किए गए बलिदानों को याद करता है और उनका सम्मान करता है। अरदास का अर्थ होता है एक अनुरोध, एक प्रार्थना, एक प्रार्थना, एक याचिका या एक उच्च अधिकारी के लिए एक संबोधन। अरदास सिख पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा है। अरदास सुबह और शाम की प्रार्थना के समापन पर और गुरुद्वारे, घर या कहीं और किसी भी धार्मिक समारोह या कार्यक्रम के शुरू या अंत में और परिवार में खुशी या दुख के हर अवसर पर किया जाता है। हाथ जोड़कर खड़े होकर अरदास की जाती है। अधिकतर गुरुद्वारे की ग्रंथी अरदास का पाठ करती है, लेकिन इसे कोई भी सिख पढ़ सकता है। अरदास का वर्तमान स्वरूप 1945 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति द्वारा अनुमोदित एक मानकीकृत संस्करण है।

ੴ एक ओंकार वाहेगुरू जी की फतेह।।
श्री भगौती जी सहाय।। वार श्री भगौती जी की पातशाही दसवीं।।

प्रिथम भगौती सिमरि कै गुरु नानक लई धिआइ ॥
फिर अंगद गुरु ते अमरदास रामदासै होई सहाय।।

अरजन हरगोबिंद नो सिमरौ श्री हरिराय।।
श्री हरिकृषन ध्याइये जिस डिठै सभ दुख जाए।।
तेग बहादर सिमरियै घर नौ निध आवै धाय।।
सभ थाईं होए सहाय।।
दसवां पातशाह गुरु गोविंद साहिब जी ! सभ थाईं होए सहाय।।

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दसां पातशाहियां दी जोत श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी दे पाठ दीदार दा ध्यान धर के बोलो जी वाहेगुरु !
पंजां प्यारेयां, चौहां साहिबज़ादेयां, चालीयां मुक्तेयां, हठीयां जपीयां, तपीयां, जिनां नाम जपया, वंड छकया, देग चलाई,
तेग वाही, देख के अनडिट्ठ कीता, तिनां प्यारेयां, सचियारेयां दी कमाई दा ध्यान धर के, खालसा जी ! बोलो जी वाहेगुरु !

जिनां सिंहा सिंहनियां ने धरम हेत सीस दित्ते, बंद बंद कटाए, खोपड़ियां लहाईयां, चरखियां ते चढ़े,
आरियां नाल चिराये गए, गुरद्वारेयां दी सेवा लई कुरबानियां कीतियां, धरम नहीं हारया,
सिक्खी केसां श्वासां नाल निभाई, तिनां दी कमाई दा ध्यान धर के, खालसा जी !

बोलो जी वाहेगुरु !
पंजां तख्तां, सरबत गुरद्वारेयां, दा ध्यान धर के बोलो जी वाहेगुरु !

प्रिथमे सरबत खालसा जी दी अरदास है जी, सरबत खालसा जी को वाहेगुरु, वाहेगुरु, वाहेगुरु चित्त आवे, चित्त आवण दा सदका सरब सुख होवे।
जहां जहां खालसा जी साहिब, तहां तहां रछया रियायत, देग तेग फतेह, बिरद की पैज, पंथ की जीत, श्री साहिब जी सहाय, खालसे जी के बोलबाले, बोलो जी वाहेगुरु !

सिक्खां नूं सिक्खी दान, केस दान, बिबेक दान, विसाह दान, भरोसा दान, दानां सिर दान, नाम दान श्री अमृतसर साहिब जी दे स्नान, चौकियां, झंडे, बुंगे, जुगो जुग अटल, धरम का जैकार, बोलो जी वाहेगुरु ! सिक्खां दा मन नीवां, मत उच्ची मत दा राखा आप वाहेगुरु।

हे अकाल पुरख आपणे पंथ दे सदा सहाई दातार जीओ! श्री ननकाना साहिब ते होर गुरद्वारेयां, गुरधामां दे, जिनां तों पंथ नूं विछोड़या गया है, खुले दर्शन दीदार ते सेवा संभाल दा दान खालसा जी नूं बख्शो। हे निमाणेयां दे माण, निताणेयां दे ताण, निओटेयां दी ओट, सच्चे पिता वाहेगुरू ! आप दे हुज़ूर ……… दी अरदास है जी।

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अक्खर वाधा घाटा भुल चूक माफ करनी। सरबत दे कारज रास करने। सोई पियारे मेल, जिनां मिलया तेरा नाम चित्त आवे। नानक नाम चढ़दी कलां, तेरे भाणे सरबत दा भला। वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह॥

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