काव्य की परिभाषा – kavya ki paribhasha

साहित्य भाषा के माध्यम से जीवन की मार्मिक अनुभूतियों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यंजना के दो माध्यम माने गये हैं – गद्य और पद्य।

छन्दबद्ध, लयबद्ध, तुकान्त पंक्ति ही पद्य मानी जाती हैं जिसमें विशिष्ट प्रकार का भाव-सौन्दर्य, सरसता और कल्पना का पुट होता है।

काव्य की परिभाषा – kavya ki paribhasha

काव्य हमारे भावो, विचारो की शाब्दिक अभिव्यक्ति है जो आनन्द की अनुभूति कराने वाली होने के कारण संरक्षणीय है। आसान भाषा में कहे तो, ऐसा वाक्य जिसे पढ़ कर आनन्द की अनुभूति होती है, उसे काव्य अथवा कविता कहते है।

काव्य की परिभाषा - kavya ki paribhasha

https://archive.org/embed/KavyaKiParibhasha

काव्य के कितने तत्व होते हैं?

Explanation: काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो।

महाकाव्य किसे कहते हैं

महाकाव्य एक सर्गबद्ध रचना है जो महान् चरित्रों से सम्बद्ध होता है। उसका आकार तो बड़ा होता ही है उसमें चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष) का वर्णन भी होता है। उसके प्रारम्भ में नमस्कार (स्तुति) और वस्तु-निर्देश की योजना भी होती है। उसमें विविध वर्णन, प्राकृतिक चित्रण और सामाजिक विधि विधानों का संयोजन भी अपेक्षित है। इसमें शान्त, वीर, शृंगार में से कोई एक रस प्रधान होता है तथा शेष गौण रूप में आते हैं। इसमें किसी महत् उद्देश्य का होना भी अपेक्षित है। हिन्दी में रामचरितमानस पद्मावत, सूरसागर, साकेत, प्रियप्रवास, कामायनी और लोकायतन आदि श्रेष्ठ महाकाव्य हैं।

खण्डकाव्य किसे कहते हैं

खण्डकाव्य में पूर्ण जीवन न ग्रहण करके खण्ड जीवन ही ग्रहण किया जाता है, पर उसकी रचना महाकाव्य के रचना विधान से भिन्न होकर भी उसके समान ही होती है। यह खण्ड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है, जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: पूर्ण प्रतीत होता है। उसमें महाकाव्य के लक्षण संकुचित रूप में रहते हैं। आकार की लघुता होते हुए भी इसमें समन्वित प्रभाव अपेक्षित है। अर्थात् इसमें कथा की एकता अनिवार्य है साथ ही इसमें भी महाकाव्य के समान कोई निश्चित उद्देश्य भी होना चाहिए।

See also Good thoughts in Hindi and English

हिन्दी में अनेक श्रेष्ठ खण्डकाव्य हैं। आदि काल में ‘गोरा बादल की कथा’ (जटमल) भक्ति काल में ‘सुदामा चरित’ (नरोत्तमदास) रीति काल में ‘श्याम सनेही’ (आलम) और आधुनिक काल में ‘हल्दी घाटी’ (श्याम नारायण पाण्डेय), ‘संशय की एक रात’ (नरेश मेहता), आदि प्रमुख हैं।

मुक्तक काव्य किसे कहते हैं

प्रबन्ध काव्य में कथा रहती है अतः उसमें पूर्वापर सम्बन्ध रहता है। परन्तु मुक्तक में पूर्वापर सम्बन्ध का मांत्र एक निर्वाह आवश्यक नहीं रहता, क्योंकि इसका प्रत्येक छन्द स्वतन्त्र रहता है और उसमें कोई कथा नहीं होती, या अनेक भाव या विचार होते हैं या किसी घटना का संकेत होता है। इसमें कवि की वैयक्तिक अनुभूतियों, भावनाओं और आदर्शों की प्रधानता रहती है।

भाव-प्रधानता के कारण इसमें गीतात्मकता का विशेष स्थान रहता है। यह मुक्तक आगे पीछे के पदों से सम्बन्ध रखकर भी एक ऐसा निरपेक्ष छन्द है जो स्वत: रसोद्रेक कराने में पूर्णत: समर्थ होता है। तुलसी की विनय पत्रिका के पद ‘कबीर की साखी’ बिहारी के दोहे मुक्तक काव्य के ही रूप आचार्यों ने मुक्तक के कुछ भेद भी किये हैं, जिनमें डॉ. रामसागर त्रिपाठी ने मुक्तकों को इस प्रकार बाँटा है।

Leave a Comment